मुरादाबाद की बेटी इल्मा अफरोज की सिविल सेवा परीक्षा पास करने की कहानी आज की बेटियों के लिए बनी मिसाल
किस्मत हर बार जितनी जोर से दगा देती, उतनी ही मजबूती से इल्मा को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कंुदरकी गांव की किसान परिवार की बेटी इल्मा की कहानी उन बेटियों के लिए मिसाल है जो कि जरा सी मुश्किल में हिम्मत हार जाती हैं। जरा से हालात में हौसला खो देती हैं। हिम्मत, हौसले, मजबूती की भट्टी से निकलकर इल्मा ने अपनी मिसाल पूरी दुनिया के सामने पेश की है। इस साल आए यूपीएससी के सिविल सेवा परीक्षा परिणामों में इल्मा अफरोज ने ऑल इंडिया 217वीं रैंक हासिल की है। अब आपको बताते हैं, इल्मा की कहानी।
कहानी शुरू होती है बेहद सभ्य और संसाधनयुक्त परिवार से। कंुदरकी नगर पंचायत के पूर्व चेयरमैन काजी हबीब अहमद की पोती है इल्मा अफरोज। राजनीति से आगे बढ़कर पिता कारी अफरोज अहमद ने विरासत में खेती संभाली। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का सपना देखने वाले कारी अफरोज बदकिस्मती से बीच में ही साथ छोड़कर अल्लाह को प्यारे, निधन हो गए।
जब पिता का निधन हुआ, उस वक्त इल्मा 9वीं क्लास में पढ़ती थी। उम्र रही होगी करीब 14 साल। परिवार धीरे-धीरे गरीबी के हालात में पहंुच गया। इल्मा, इल्म की रोशनी लेना चाहती थी लेकिन परिवार का पालन पोषण बड़ी चुनौती बन गया। भाई काजी अराफात की उम्र काफी छोटी थी तो वह कुछ नहीं कर सकता था।
इल्मा ने तय किया कि वह हालात से लड़ेगी। आखिरकार, इल्मा ने खेती को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। घर का गुजारा चलाने के लिए वह ट्यूशन पढ़ाती, यहां तक की घरों में बर्तन भी धोए लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
खेती में रमने के लिए इल्मा ने अपने बाल भी कटा लिए और लग गई अपने परिवार और अपने सपनों को आगे बढ़ाने में। इल्मा का कहना है कि यह उनके लिए बेहद चुनौती का समय था लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं था।
घर चल निकला, पढ़ाई भी चल निकली। अपनी मेहनत के दम पर इल्मा ने फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका तक पढ़ाई की लेकिन कभी अपनी सादगी का दामन नहीं छोड़ा। आज भी इल्मा, भले आईपीएस बन गई हो लेकिन घर में वैसी ही सादी सी लड़की मिलेगी।
इल्मा का कहना है कि उन्होंने एक साल पहले सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की थी। बस मेहनत की और निकल गई। उनका कहना है कि दुनिया में कोई भी काम मुश्किल नहीं है, बस करने की ललक होनी चाहिए। उन्होंने न केवल अपने दम पर पूरे परिवार को आर्थिक हालात से उबारा बल्कि खुद को भी स्थापित किया।
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