गुजरात की पाबिबेन बनी आज की महिलाओं के लिए मिसाल, 300 की नौकरी से 20 लाख की ऑनलाइन मार्केट वाली महिला बनी
कामयाबी के लिए किसी चमत्कार की जरूरत नहीं होती। कम से कम गुजरात के कच्छ के अंजार तालुका के गांव भदरोई की रहने वाली पाबिबेन रबारी पर तो यह बात सच साबित होती है। पाबिबेन, जो बेहद संघर्षों से निकली। अनपढ़ होने के बावजूद आज न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी अपनी कारीगरी से एक ब्रांड बन गई हैं। कभी 300 रुपये प्रतिमाह की नौकरी पर काम करने वाली पाबिबेन की वेबसाइट का एक साल का टर्नओवर अब 20 लाख रुपये से भी अधिक है। जानिये उनकी कहानी…
पाबिबेन गुजरात के उस आदिवासी समुदाय ढेबरिया रबारी से आती हैं, जिसे परंपरागत तौर पर कढ़ाई का अनुभव है। यहां यह भी परंपरा है कि लड़कियां शादी से पहले ही कढ़ाई करके अपने ससुराल के लिए कपड़े तैयार करती हैं। इसके बाद शादी के बाद उन्हें साथ लेकर जाती हैं।
पाबिबेन बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई। बचपन में ही उनके पिता की मौत हो गई। जिस वक्त पिता की मौत हुई, उस समय तीसरी बेटी पेट में ही थी। पाबिबेन की मां ने किसी तरह मजदूरी करके तीन बेटियों का पेट पाला। गरीबी की वजह से पाबिबेन भी कुछ दिन स्कूल जा पाई। इसके बाद मजदूरी करने लगी। इस बीच पाबिबेन ने एक संस्था में बतौर कढ़ाई कारीगर नौकरी हासिल की। यहां से महीनेभर काम करने के बाद पाबिबेन को 300 रुपये वेतन मिलता था।
इस बीच एक बार कुछ विदेशी जब पाबिबेन के गांव आए तो वह उनकी कढ़ाई देखकर बेहद खुश हो गए। पाबिबेन ने उन्हें अपना बनाया प्रोडक्ट फ्री में दे दिया। साथ ही उस प्रोडक्ट का नाम पाबि बेन बताया गया। यहीं से शुरू हुआ पाबिबेन का नया सफर।
इसके बाद पाबिबेन ने एक वेबसाइट बनाई। इस वेबसाइट के माध्यम से अपने प्रोडक्ट ऑनलाइन बेचने शुरू किए। पहला ही ऑर्डर सीधे 73 हजार रुपये का आया। इससे पाबिबेन को नई दिशा मिल गई।
आज पाबिबेन का एक साल का टर्नओवर 20 लाख रुपये से अधिक है। उनकी एक अलग पहचान है। पाबिबेन के पास 60 महिला कारीगर हैं जो कि 20 से अधिक प्रकार के डिजाइन बनाती हैं। वर्ष 2016 में पाबीबेन को उद्यमिता के लिए जानकी देवी बजाज पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। आज पाबिबेन एक नाम नहीं बल्कि इंटरनेशनल ब्रांड है।
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