जोयिता मोंडल की कामयाबी की कहानी बनी मिसाल, बेहद संघर्ष से गुजरकर पहंुची मंजिल तक
‘कामयाबी उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है’
कुछ ऐसे ही हौसलों से भरी है ट्रांसजेंडर जोयिता मोंडल की कहानी। कभी सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा करने वाली जोयिता की नई पहचान अब देश की पहली ट्रांसजेंडर जज के रूप में है।
जोयिता को पश्चिमी बंगाल के उत्तर दिनाजपुर स्थित इस्लामपुर की लोक अदालत में बतौर जज नियुक्ति मिली है। उनका मकसद समाज के हर वर्ग के लिए न्याय देना सर्वोपरि है।
जोयिता का बचपन बेहद मुश्किलों में बीता। बचपन से ही काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में पढ़ाई के दौरान से ही जोयिता इस भेदभाव का शिकार हुई। 10वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।
घर से ही जोयिता को कोई सुहानूभूति नहीं मिली। आखिरकार घर छोड़ना पड़ा। जोयिता के लिए कई बार ऐसा भी हुआ कि उन्हें रात सड़क पर ही गुजारनी पड़ी। कई बार भीख मांगकर अपना पेट भरना पड़ा। लेकिन जोयिता का सपना कुछ कर गुजरने का था, इसलिए उन्होंने हार नहीं मानी। कॉल सेंटर में नौकरी की लेकिन वहां भी ज्यादा दिन नहीं रह पाई।
अचानक वर्ष 2010 में जोयिता एक सामाजिक संगठन नई रोशनी से जुड़ गई। यहीं से जोयिता की नई जिंदगी की शुरुआत हुई। उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों में व्यस्त कर लिया। अब उनका मकसद समाज के लिए कुछ करना था। साथ में पढ़ाई भी दोबारा शुरू कर दी।
वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट के ट्रांसजेंडर को अलग रुतबा देने के आदेश के बाद से जोयिता की जिंदगी में नया मोड आया। अब वह सरकारी नौकरी के लिए भी भाग्य आजमां सकती थी। आखिरकार जोयिता ने पश्चिमी बंगाल में जज बनने का सौभाग्य हासिल किया।
आज जोयिता न केवल देश की उन महिलाओं के लिए मिसाल हैं, जो कि हालात से हार जाती हैं बल्कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भी एक आदर्श के तौर पर हैं। जोयिता का मकसद अब केवल समाज की सेवा करना है। उन्हें न्याय देना है।
(All Pics- Joyita’s Facebook)
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