केंद सरकार(central government) ने वर्ष 1920 का कैदी शिनाख्त कानून बदला
इस बार केंद्र की मोदी सरकार ने संसद सत्र में विधेयक लाकर राज्य के 100 साल पुराने कानून को बदल दिया है। जी हां, केंद्र सरकार दंड प्रक्रिया शिनाख्त विधेयक 2022 को संसद के दोनों सदनों से पास करा लिया है। हालांकि विपक्ष ने इस पर विरोध जताते हुए इसे निजता को भंग करने वाला करार दिया।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि इससे किसी की भी निजता का हनन नहीं होगा। बल्कि इस बिल से दोष सिद्धि की दर में बढ़ोतरी होगी। शाह ने कहा कि इस बिल का उद्देश्य 100 साल पुराने कानून को बदलकर आधुनिक तकनीकी के जरिये जांच प्रक्रिया को मजबूती देना है। उन्होंने कहा कि, मैं सदन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसी मैं की भी निजता भंग नहीं होगी न ही कोई डाटा लीक होने का प्रश्न है। शाह ने कहा कि इस बिल का मकसद पुलिस और फोरेंसिक टीम की क्षमता को बढ़ाना है। इसके अलावा प्रस्तावित कानून से अपराधियों की जांच में वैज्ञानिक तरीकों को स्थान मिलेगा और थर्ड डिग्री से छुटकारा मिलेगा।
पुलिस को अपराधियों के भौतिक जैविक नमूने लेने का अधिकार मिला
इस बिल में पुलिस को गिरफ्तार आरोपियों और दोषियों की भौतिक और जैविक नमूने लेने का अधिकार दिया गया है। प्रस्तावित कानून अंग्रेजों के जमाने 1920 के कैदी शिनाख्त कानून का स्थान लेगा। बिल के मुताबिक इसमें पुलिस के लिए अपराधियों के शारीरिक मापदंड का ब्योरा लेने का दायरा बढ़ाया गया है।
माप से मना किया तो जेल
शारीरिक माप लेने से रोकने को भारतीय दंड संहिता की धारा 186 के तहत अपराध माना जाएगा, जिसके लिए तीन माह की कैद या पांच सौ रुपये जुर्माना देना होगा। हालांकि, ऐसे लोग जो महिला-बच्चों के खिलाफ अपराध में दोषी साबित या गिरफ्तार नहीं हुए हैं या फिर सात साल से कम कैद वाले अपराध के चलते हिरासत में हैं, वे जैविक नमूने देने से इनकार कर सकते हैं।
75 साल तक संग्रहीत रहेगा डाटा
पुलिस को कैदियों के अंगुलियों के निशान, हथेली के छापों और पदचिन्हों के निशान, तस्वीरें, पुतलियों और रेटिना स्कैन, शारीरिक व जैविक नमूने इकट्ठे करने का अधिकार होगा। धारा 53 और 53-ए के तहत हस्ताक्षर, लेखनी या व्यवहार से जुड़े अन्य नमूने भी जुटा सकेंगे। कैदियों की शारीरिक माप का रिकॉर्ड 75 साल तक संग्रहीत रखा जा सकेगा।
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