सब्जी बेचने वाले की बेटी बनी जज, यहां पढ़ें सफलता की पूरी कहानी

Success Story Civil Judge Ankita Nagar : तीन बार फेल हुई लेकिन नहीं मानी हार, चौथी बार में मिली सफलता

Success Story Civil Judge Ankita Nagar

जब इरादा पक्का हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। ऐसी ही कहानी है सब्जी बेचने वाले अशोक नागर की बेटी अंकिता नागर की। 29 साल की अंकिता ने चौथे प्रयास में सिविल जज क्लास 2 की परीक्षा में 5वीं रैंक हासिल की है।

अंकिता ने कहा, वह तीन प्रयासों में नाकाम रहीं, लेकिन कभी भी जज बनने के सपने को छोड़ा नहीं। उन्होंने कहा, मेरे पास खुशी जाहिर करने के लिए शब्द नहीं हैं। वह परीक्षा की तैयारियों के बीच खाली समय में पिता की भी मदद करती थीं।

पिता ने उधार लेकर जमा की थी कॉलेज की फीस
अंकिता ने मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के वैष्णव कॉलेज से एलएलबी की। उन्होंने वर्ष 2021 में एलएलएम की परीक्षा पास की। पिता ने उधार लेकर कॉलेज की फीस जमा की। इसके बाद वह सिविल जज की तैयारी में जुट गईं।

बचपन से चाहती थी कानून की पढ़ाई, चौथे प्रयास में कामयाबी
वर्तमान में एलएलएम की स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल करने वाली अंकिता नागर (29) ने बताया कि वह बचपन से कानून की पढ़ाई करना चाहती थीं। उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई के दौरान तय कर लिया था कि उन्हें एक दिन जज बनना है। यह उनका चौथा प्रयास था। इससे पहले वह तीन बार इस परीक्षा में असफल हो चुकी थीं।

हर मजलूम को इंसाफ मिले
अंकिता नागर ने कहा कि तीन बार नाकाम होने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए अपने सफर पर चलती रही। इस सफर के दौरान मेरे लिए रास्ते खुलते गए और मैं इस तरह अपनी मंजिल पर पहुंचने में कामयाब रही। अंकिता नागर ने कहा कि एक जज के तौर पर काम शुरू करने के बाद उनका ध्यान इस बात पर होगा कि उनकी अदालत में आने वाले हर मजलूम को इंसाफ मिले।

हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती है
अंकिता के पिता अशोक नागर शहर के मूसाखेड़ी इलाके में सब्जी बेचते हैं। उन्होंने बताया कि परीक्षा की तैयारी के दौरान वक्त मिलने पर अंकिता इस काम में उनका हाथ भी बंटाती रही है। अपनी बेटी की कामयाबी पर अशोक नागर ने कहा कि उनकी बेटी मेरे जैसे तमाम लोगों के लिए एक मिसाल है कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती है।

ठेले पर पिता का हाथ बटाती थीं अंकिता
अंकिता ने मीडिया को बताया है कि वह रोज 08 घंटे पढ़ाई करती थी और जब कभी शाम को ठेले पर भीड़ अधिक हो जाती थी तो वह पिता का हाथ बटाने को पहुंच जाती थीं। कई बार तो रात के 10 बजे घर लौट पाती थी और उसके बाद पढ़ाई करती थी। बीते तीन साल से सिविल जज की तैयारी कर रही थी। उसका मानना है कि किसी परीक्षा में नंबर कम ज्यादा आते रहते हैं लेकिन छात्रों को हौसला रखना चाहिए, अगर असफलता मिलती है तो नए सिरे से कोशिश करनी चाहिए।

डॉक्टर बनना चाहती थीं पर…

अंकिता पहले डॉक्टर बनना चाहती थी। पढ़ाई का खर्चा काफी ज्यादा है। इसलिए सिविल जज परीक्षा की तैयारी शुरू की। उन्होंने ज्यादातर पढ़ाई सरकारी स्कॉलरशिप पर की।

बेटा-बेटी में फर्क न करें
पिता अशोक नागर का कहना है, बेटी ने उदाहरण पेश किया है कि जिंदगी में कठिनाइयों के बावजूद हौसला नहीं खोना चाहिए। उन्होंने कहा, बेटी और बेटे में फर्क न करते हुए शिक्षा जरूर पूरी करवानी चाहिए। हमने उसकी शिक्षा के लिए काफी समझौते किए।

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