दुनिया की सबसे छोटी मशीन बनाकर देहरादून के युवाओं ने मचाया धमाल

ये है दुनिया की सबसे छोटी ईसीजी मशीन(World Smallest ECG machine), PM Modi ने भी की Startup की तारीफ

ECG machine का नाम जुबां पर आते ही अस्पताल की एक बड़ी सी मशीन की छवि दिमाग में उभरती है। लेकिन Dehradun के युवाओं ने दुनिया की सबसे छोटी ईसीजी मशीन (World Smallest ECG machine) बनाकर धमाल मचा दिया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं सनफोक्स टेक्नोलॉजी स्टार्टअप(Sunfox Technology Startup) की। आज देश के दूर दराज ग्रामीण इलाकों तक यह मशीन धमाल मचा रही है।

मैकेनिकल इंजीनियर रजत ने स्टार्टअप के रूप में सनफॉक्स कंपनी के नाम से दिल की बीमारी का पता लगाने वाली स्पंदन डिवाइस बनाई है। उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के नामी अस्पतालों में मरीजों के लिए यह मशीन वरदान साबित हो रही है।

रजत जैन ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट टेक्नोलॉजी से यह डिवाइस तैयार की है। इसकी खास बात ये है कि इस डिवाइस से अनपढ़ से लेकर डॉक्टर तक कोई भी दिल की बीमारी का पता कर सकता है।

भारत से छह स्टार्ट अप का चयन
साथ ही मशीन यह भी अलर्ट कर देती है कि दिल की बीमारी होने की कितने प्रतिशत संभावना है। रजत ने अपने इस आइडिया को स्टार्टअप के जरिये उद्योग के रूप में स्थापित करने की ओर कदम बढ़ाए। इस मशीन से 3 महीने पहले ही दिल के दौरे की जानकारी मिल सकेगी।

चीन में वर्ल्ड इकॉनोमिक्स फोरम ने न्यू चैंपियन मीटिंग में विश्व के कई देशों से टॉप-96 स्टार्ट अप को आमंत्रित किया। जिसमें भारत से छह स्टार्ट अप का चयन किया गया। इसमें रजत जैन भी शामिल थे। रजत के उद्योग को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय टेक्नोलॉजी बिजनेस इन्क्यूबेटर और उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के पूर्व वीसी प्रो. वीके तिवारी सहयोग कर रहे है।

स्टार्टअप के लिए यह है सरकार का सहयोग
प्रदेश सरकार मान्यता प्राप्त स्टार्टअप(startup) को प्रोत्साहित करने के लिए सहयोग कर रही है। सामान्य वर्ग के स्टार्टअप को 10 हजार, एससी, एसटी, महिला, दिव्यांग वर्ग को 15 हजार (प्रति स्टार्ट अप) मासिक भत्ता एक साल तक दिया जा रहा है। इसके साथ ही नए उत्पाद की मार्केटिंग के लिए सामान्य वर्ग के स्टार्ट अप को 5 लाख और एससी, एसटी व महिला वर्ग को 7.5 लाख तक दिया जा रहा है। एमएसएमई नीति के अनुसार स्टांप ड्यूटी और एसजीएसटी में छूट का लाभ दिया जा रहा है। मान्यता प्राप्त इन्क्यूबेटरों को तीन साल की अवधि तक संचालन एवं प्रबंधन खर्च के रूप में दो लाख प्रति वर्ष दिया जा रहा है।

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