‘मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है’
पुष्पा रावत भी हौसलों की ऐसी ही मिसाल है। पुष्पा आज उन सभी के लिए मिसाल है जो कि सही सलामत होने के बावजूद हालात के हाथों हार जाते हैं। मंजिल की तलाश में भटककर गलत रास्ते पर निकल पड़ते हैं। बचपन से दोनों हाथ न होने के बावजूद पुष्पा आज देश की नवरत्न कंपनी ओएनजीसी में रेवेन्यू डिपार्टमेंट में बतौर असिस्टेंट अपनी सेवाएं दे रही है। आइए आपको बताते हैं पुष्पा की कहानी।
पुष्पा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी जिले में हुआ था। पैदा हुई तो दोनों हाथ नहीं थे। बिना हाथ की बेटी पाकर मां-बाप को बहुत रोना आया। लगा कि जो बच्ची इस दुनिया में आ गई है, वह अब बिना हाथों के कैसे जियेगी।
पुष्पा बड़ी होने लगी। हर खाने पीने की जिम्मेदारी मां-बाप पर थी। एक दिन अचानक एक बाबा ने पुष्पा को देखा। उन्होंने मां-बाप से बात की और पुष्पा को अपने आश्रम में बुलाया। यहीं से शुरू हुई पुष्पा की नई और चुनौती भरी जिंदगी।
बाबा ने पुष्पा को मिट्टी पर बैठाया। उसके पैर की उंगली से लिखना सिखाया। पुष्पा ने मेहनत की और एक से दो सप्ताह में ही पैरों से लिखना सीख गई। अब बारी थी पैर से पेन पकड़ने की। पुष्पा ने और मेहनत की। देखते ही देखते वह पैरों से लिखने लगी। पुष्पा ने अब खुद को इंप्रूव करना शुरू किया और धीरे-धीरे अपने खान पान व दूसरे काम भी खुद ही निपटाने लगी।
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