देश में बनी एक ऐसी आईएएस अधिकारी…जिसकी कहानी पढ़कर हैरान रह जाएंगे आप

 

जरा सी चोट पर टूट जाती हैं हड्डियां, अब तक 16 बार टूट चुकी हैं हड्डी, आठ बार हो चुकी है सर्जरी। अपने दम पर पढ़कर सिविल सेवा परीक्षा में उम्मुल ने पाई ऑल इंडिया 420वीं रैंक।

दिल्ली की झुग्गी झोपडि़यों से निकलकर एक बहादुर लड़की ने जिंदगी की तमाम परेशानियों पर फतह पाकर देश में नाम रोशन कर दिया। संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में दिल्ली की उम्मुल खेर ने 420वीं रैंक हासिल की। उम्मुल की कहानी केवल सिविल सेवा परीक्षा पास करने तक नहीं है। उम्मुल की जिंदगी ने उन्हें हर दर्द दिया लेकिन हर परेशानी से पार पाकर उम्मुल हंसती हुई आगे बढ़ गई। उम्मुल को हड्डियों की ऐसी बीमारी है, जिसमें जरा सा झटका लगने पर भी फ्रैक्चर हो जाता है। इस वजह से अभी तक उम्मुल 16 फ्रैक्चर का सामना कर चुकी है। उनकी आठ बार सर्जर भी हो चुकी है। बावजूद इसके उम्मुल का हौसला सातवें आसमान पर है।

उम्मुल का बचपन निजामुद्दीन के पास झुग्गियों में बीता। उनके अब्बा मोहल्ले में फेरी लगाकर मंूगफली बेचा करते थे। बाद में यह झुग्गियां टूट गई तो उम्मुल का पूरा परिवार से वहां से त्रिलोकपुरी की ओर रहने चला गया। वहां पूरा परिवार किराए का एक कमरा लेकर रहने लगा। सातवीं पास करने के बाद परिवार में उम्मुल की पढ़ाई के खिलाफ आवाज उठने लगी। मां का साया सर से उठ गया तो यह मुश्किल और बढ़ती चली गई। अब्बा ने दूसरी शादी कर ली। दूसरी मां, उम्मुल से चाहती थी कि पढ़ाई बंद कर अब केवल घर के काम करे लेकिन उम्मुल के सपने उसे इन सबसे दूर करते थे।

उम्मुल पढ़ना चाहती थी लेकिन परिवार रोकना चाहता था। इस सबके बीच कब उम्मुल आगे बढ़ गई और घर छोड़कर चली गई। दिल्ली में ही उन्होंने एक किराए का कमरा लिया और आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। उम्मुल का सपना यहां से नए मुकाम की ओर बढ़ चला था। वह रोजाना आठ-आठ घंटे बच्चों को पढ़ाकर अपने किराए के कमरे और पढ़ाई का खर्च उठाने लगी।

उम्मुल ने 10वीं में 91 प्रतिशत अंक हासिल किए जबकि 12वीं उन्होंने 90 प्रतिशत अंकों के साथ पास की। इसके बाद उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया।

उम्मुल खेर ने कॉलेज की पढ़ाई के दौरान दिव्यांगों के लिए काम शुरू किया। इसके तहत दुनिया के तमाम देशों का भ्रमण कर चुकी हैं। उम्मुल 2011 में साउथ कोरिया गई।

ग्रेजुएशन के बाद उम्मुल को साइकोलॉजी विषय छोड़ना पड़ा। उन्हें जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में एमए इंटरनेशनल रिलेशंस में एडमिशन मिल गया। एमए के बाद उम्मुल ने जेएनयू से ही एमफिल किया। इसके बाद 2014 में वह जापान के इंटरनेशन लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चुनी गई। यहां एक साल का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

जापान से लौटकर उन्होंने जेएनयू से पीएचडी शुरू की। 2016 में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की। पहले ही प्रयास में उम्मुल ने 420वीं रैंक हासिल की।

उम्मुल का कहना है कि संघर्ष के दिन बीतने के बाद अब प्रशासनिक सेवा में चयन होना उनके लिए सौभाग्य की बात है। वह बचपन से ही इसका सपना देखती थी, क्योंकि उन्हें किसी ने बताया था कि इस सेवा में चयन के लिए होने वाली परीक्षा बेहद मुश्किल होती है। अब वह अपने माता-पिता का हर ख्वाब पूरा करना चाहती है।

(All Pics -Ummul FB Wall)

 

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