ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय, देहरादून में मशहूर ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ ने ‘एहसास-ए-ग़ज़ल : इक शाम तलत अज़ीज़ के नाम’ कार्यक्रम में अपनी मशहूर ग़ज़लों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
ग्राफिक एरा में मशहूर ग़ज़लकार तलत अज़ीज़ की ग़ज़लों का जादू चला और खूब चला। अपनी लोकप्रिय ग़ज़लों को अपने खास अंदाज़ में सुनाकर तलत अज़ीज़ ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
ग्राफिक एरा के स्थापना दिवस के समारोह की श्रृंखला में देर शाम ‘एहसास-ए-ग़ज़ल : इक शाम तलत अज़ीज़ के नाम’ के रूप में भव्य आयोजन हुआ। तलत अज़ीज़ ने अपनी ग़ज़लों से खचाखच भरे सिल्वर जुबली कन्वेंशन सेंटर में ऐसा जादुई माहौल बना दिया कि कभी इस कदर खामोशी कि सुई गिरने की आवाज़ भी सुनाई दे और कभी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से कुछ भी सुनाई न दे।
ग़ज़लकार और अभिनेता तलत अज़ीज़ ने इस रुपहली शाम का आगाज़ एक कता “तुझ सा पहले ना कभी…” से किया। इसके बाद उन्होंने वह ग़ज़ल सुनाई जिससे उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी – “कैसे सुकून पाऊं, तुझे देखने के बाद…”। इसके बाद फिल्म उमराव जान की मशहूर ग़ज़ल “ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है…” और फिल्म बाज़ार की ग़ज़ल “फिर छिड़ी रात, बात फूलों की…” सुनाकर खूब तालियां बटोरीं।
उन्होंने आगे “आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे…”, “मेरे अपने मेरी होने की निशानी…” जैसी ग़ज़लों से शाम को यादगार बना दिया। श्रोताओं की फ़रमाइश पर भी उन्होंने कई ग़ज़लें पेश कीं।
मोहक और जीवंत धुनों ने पूरे माहौल को सराबोर कर दिया। उनकी प्रस्तुति “आज जाने की जिद न करो…” पर पहुंची तो सभागार में संवेदनशीलता, मिठास और भावनाओं का ऐसा संगम बना कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।
इस शानदार प्रस्तुति में तबले पर जीतू शंकर, कीबोर्ड पर देवेन योगी, वायलिन पर इक़बाल वारसी, पर्कशन पर इमरान भियानी और शाहिद अजमेरी ने संगत कर कार्यक्रम को और जीवंत बना दिया।
समारोह की शुरुआत ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला ने पिछले 32 वर्षों की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. एम. पी. सिंह ने किया।