देशभर के स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में विद्यार्थियों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए काउंसलिंग सेवाएं अनिवार्य करने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
🔹 100 से अधिक छात्रों पर अनिवार्य होगा काउंसलर
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, जिन संस्थानों में 100 या उससे अधिक विद्यार्थी पढ़ते हैं, वहां कम से कम एक पेशेवर काउंसलर रखना अनिवार्य होगा। काउंसलर विद्यार्थियों के तनाव, दबाव, अकेलेपन और मानसिक परेशानियों से निपटने में मदद करेगा।
🔹 हॉस्टल में सुरक्षा के विशेष निर्देश
जिन संस्थानों में आवासीय (हॉस्टल) सुविधा है, वहां आत्महत्या को रोकने के लिए खास कदम उठाने होंगे। जैसे
• हॉस्टल के कमरों में ऐसे पंखे या उपकरण नहीं लगेंगे, जिनका उपयोग आत्महत्या के लिए किया जा सके।
• छेड़छाड़ और उत्पीड़न रोकने के लिए निगरानी और शिकायत निवारण प्रणाली अनिवार्य होगी।
🔹 आत्महत्या रोकथाम के लिए हेल्पलाइन अनिवार्य
हर शैक्षणिक संस्था को छात्रों के लिए 24×7 मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन, स्थानीय अस्पतालों से संपर्क और सहायता सेवाओं तक त्वरित पहुंच सुनिश्चित करनी होगी।
🔹 साल में दो बार स्टाफ का मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण
संस्थान के शिक्षकों, प्रबंधकों और सभी कर्मचारियों को हर छह महीने में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या रोकथाम का प्रशिक्षण देना अनिवार्य किया गया है। इससे कर्मचारियों को विद्यार्थियों की समस्याएं समय रहते समझने और उनकी मदद करने में मदद मिलेगी।
🔹 राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप कदम
सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट के आधार पर उठाया है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा इस संबंध में नोटिफिकेशन वर्ष 2023 में जारी किया गया था, जिस पर अब अमल अनिवार्य कर दिया गया है।
मानसिक स्वास्थ्य आज की शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश न केवल विद्यार्थियों को भावनात्मक सहारा देगा, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की ताकत भी देगा। अब जरूरी है कि सभी शैक्षणिक संस्थाएं इस फैसले को गंभीरता से लागू करें।