उत्तराखंड में होने जा रहा है लिंगदोह समिति की सिफारिशों में परिवर्तन, गठित हुई समिति कर रही है स्टडी

उत्तराखंड के कालेज व यूनिवर्सिटीज में अब स्टूडेंट पॉलिटिशियन बनना आसान नहीं होगा। सरकार के निर्देशों पर एक समिति गठित हुई है जो कि लिंगदोह समिति की सिफारिशों का अध्ययन कर रही है। यह समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश करेगी, जिसके आधार पर पूरे प्रदेश में छात्र राजनीति का नया खाका तैयार होगा।
बीते दिनों उत्तराखंड के एजुकेशन मिनिस्टर डा. धन सिंह रावत ने कहा था कि लिंगदोह समिति की सिफारिशें वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से रिलायबल नहीं हैं। चंूकि जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर यह सिफारिशें लागू हुई थी, तब कोर्ट ने यह भी कहा था कि एक तय समय के बाद राज्य चाहें तो इन सिफारिशों को मोडिफाई कर सकते हैं। इस नियम के आधार पर उत्तराखंड में प्रो. एचएस धामी की अध्यक्षता में एक समिति लिंगदोह समिति की सिफारिशों के बदलाव में जुट गई है।
अभी तक की स्टडी और समिति की भावी सोच के हिसाब से लिंगदोह समिति की सिफारिशों में कई बड़े परिवर्तन होने जा रहे हैं। अगर यह परिवर्तन लागू हुए तो छात्र नेता बनना आसान नहीं रहेगा। जो काबिल होगा, वही नेता बनेगा।
यह हो सकते हैं बदलाव
-छात्र संघ चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी की अनिवार्य तौर पर पुरानी कक्षा में 75 प्रतिशत उपस्थिति जरूरी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो चुनाव नहीं लड़ पाएगा। अभी तक चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी केवल एक शपथ पत्र देता है, जिसमें वह दावा करता है कि उसकी उपस्थिति 75 प्रतिशत है।
-छात्र संघ का खर्च अभी तक 5000 रुपये तय है जबकि कालेज के चुनावों में लाखों रुपये खर्च होते आए हैं। समिति इसमें भी बदलाव करेगी। यह खर्च की सीमा 25,000 रुपये या इससे अधिक हो सकती है।
-अभी तक छात्रसंघ अध्यक्ष का कार्यकाल एक सत्र का होता है लेकिन समिति इसे दो सत्र का करने पर भी विचार कर रही है।
-कोर्स के हिसाब से छात्रसंघ चुनाव लड़ने की व्याख्या होगी, जिसके मुताबिक कई और राहत छात्रों को मिल सकती हैं।
-जल्द ही समिति अपनी रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंपेगी, जिसके आधार पर छात्र नेताओं का भविष्य तय होगा।
